Thursday, April 29, 2010

कृष्ण की चेतावनी


    वर्षों तक वन में घूम-घूम, बाधा-विघ्नों को चूम-चूम,
    सह धूप-घाम, पानी-पत्थर, पांडव आये कुछ और निखर।
    सौभाग्य न सब दिन सोता है,
    देखें, आगे क्या होता है

    मैत्री की राह बताने को, सबको सुमार्ग पर लाने को,
    दुर्योधन को समझाने को, भीषण विध्वंस बचाने को,
    भगवान् हस्तिनापुर आये,
    पांडव का संदेशा लाये।

    'दो न्याय अगर तो आधा दो, पर, इसमें भी यदि बाधा हो,
    तो दे दो केवल पाँच ग्राम, रक्खो अपनी धरती तमाम।
    हम वहीं खुशी से खायेंगे,
    परिजन पर असि न उठायेंगे!

    दुर्योधन वह भी दे ना सका, आशिष समाज की ले न सका,
    उलटे, हरि को बाँधने चला, जो था असाध्य, साधने चला।
    जब नाश मनुज पर छाता है,
    पहले विवेक मर जाता है।

    हरि ने भीषण हुंकार किया, अपना स्वरूप-विस्तार किया,
    डगमग-डगमग दिग्गज डोले, भगवान् कुपित होकर बोले-
    'जंजीर बढ़ा अब साध मुझे,
    हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे।

    'हित-वचन नहीं तूने माना, मैत्री का मूल्य न पहचाना,
    तो ले, मैं भी अब जाता हूँ, अन्तिम संकल्प सुनाता हूँ।
    याचना नहीं, अब रण होगा,
    जीवन-जय या कि मरण होगा।

    'टकरायेंगे नक्षत्र-निकर, बरसेगी भू पर वह्नि प्रखर,
    फण शेषनाग का डोलेगा, विकराल काल मुँह खोलेगा।
    दुर्योधन! रण ऐसा होगा।
    फिर कभी नहीं जैसा होगा।

    'भाई पर भाई टूटेंगे, विष-बाण बूँद-से छूटेंगे,
    वायस-श्रृगाल सुख लूटेंगे, सौभाग्य मनुज के फूटेंगे।
    आखिर तू भूशायी होगा,
    हिंसा का पर, दायी होगा।'Source URL: https://logoswallpapers.blogspot.com/2010/04/blog-post.html
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